
माता सीता की खोज में निकले सभी वानर समुद्र के तट पर बैठे हैं, और सोच रहे कि 100 योजन दूर लंका द्वीप पर कैसे पहुंचा जाए।
सब अपनी- अपनी क्षमताएं बता रहे है, कि मैं इतनी दूर जा सकता हूँ, परन्तु हनुमान जी कुछ नही बोले।
जामवंत जी ने सोचा हनुमान जी को उनकी शक्तियां याद दिलाई जाए।
तो जामवंत जी कहने लगे –
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना।
का चुप साधि रहेहु बलवाना।।
पवन तनय बल पवन समाना।
बुद्धि बिबेक बिग्यान निधाना।।
कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।
इतना कहने के बाद भी हनुमान जी शांत रहे।
तो जामवंत जी आगे कहते है –
राम काज लगि तव अवतारा।
अरे हनुमान जी आपका जन्म ही भगवान राम के कार्यों के लिए हुआ है!
इतना सुनते ही हनुमान जी ने पर्वत के समान अपना शरीर बड़ा कर लिया।
सुनतहिं भयउ पर्बतकारा।।
अपनी प्रशंसा पर वो नही जगे परन्तु जैसे ही राम नाम लिया गया तुरंत पर्वत के समान हो गए और कहने लगे –
सहित सहाय रावनहि मारी
आनउॅं इहाॅं त्रिकूट उपारी ।
मैं रावण को मार सकता हूं और पूरे त्रिकूट पर्वत को ही उखाड़ कर यहां ला सकता हूं, बताइए मुझे क्या करना है? इसी भाव को गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा में
राम काज करिबे को आतुर पंक्ति से व्यक्त किया है।