“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

अपनी बुराई देखनेका ज्ञान अपनेमें है,

पर असावधानीके कारण उसका उपयोग हम दूसरोंकी बुराई देखनेमें करते रहते हैं,

जिसका बहुत बड़ा भाग अपनी कल्पना ही होती है, वास्तविक नहीं |

वास्तविक बुराईका ज्ञान तो अपने सम्बन्धमें ही सम्भव है और

उसीसे साधक सदाके लिये बुराईरहित होकर सभीके लिये उपयोगी हो जाता है |

बुराई-रहित होना सत्संगसे साध्य है और भला हो जाना दैवी विधान है |

भलाई सीखी नहीं जाती, सिखायी नहीं जाती |

बुराई-रहित होनेसे भलाई स्वतः अभिव्यक्त होती है |

बुराई-रहित होनेसे भलाई व्यापक होती है |

Image courtesy: AI

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