“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अपनी बुराई देखनेका ज्ञान अपनेमें है, पर असावधानीके कारण उसका उपयोग हम दूसरोंकी बुराई देखनेमें करते रहते हैं, जिसका बहुत बड़ा भाग अपनी कल्पना ही होती है, वास्तविक नहीं | वास्तविक बुराईका ज्ञान तो अपने सम्बन्धमें ही सम्भव है और उसीसे साधक सदाके लिये बुराईरहित होकर सभीके लिये उपयोगी हो जाता है | बुराई-रहित होना … Read more